Property Ownership Documents: भारत में घर या जमीन खरीदना हर व्यक्ति का एक बड़ा सपना होता है। लेकिन प्रॉपर्टी खरीदना केवल पैसे की बात नहीं होती, इसमें कई कानूनी प्रक्रियाएं भी शामिल होती हैं। अधिकतर लोग यह मानते हैं कि रजिस्ट्री (Sale Deed) हो जाने के बाद वे उस संपत्ति के मालिक बन जाते हैं। लेकिन यह सोच अधूरी है। प्रॉपर्टी का असली मालिकाना हक साबित करने के लिए कई अन्य दस्तावेज भी जरूरी होते हैं।
आज के समय में फर्जी दस्तावेज, डुप्लीकेट रजिस्ट्री, पुराने लोन, कोर्ट केस और लीगल विवाद जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। ऐसे में अगर आपके पास पूरे और सही दस्तावेज नहीं हैं, तो भविष्य में लोन लेने, संपत्ति बेचने या विरासत में देने जैसी स्थितियों में बड़ी परेशानी हो सकती है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि सिर्फ रजिस्ट्री ही नहीं, बल्कि प्रॉपर्टी ओनरशिप को पूरी तरह से साबित करने के लिए और कौन-कौन से डॉक्युमेंट्स जरूरी होते हैं। यह जानकारी हर प्रॉपर्टी खरीदने वाले या मालिक के लिए बेहद उपयोगी है।
सिर्फ रजिस्ट्री क्यों काफी नहीं?
रजिस्ट्री यानी Sale Deed, प्रॉपर्टी ट्रांसफर का एक जरूरी और कानूनी दस्तावेज है। लेकिन यह संपत्ति का मालिकाना हक पूरी तरह से साबित नहीं करता। यह दस्तावेज केवल यह दिखाता है कि एक व्यक्ति ने दूसरे से संपत्ति खरीदी है।
प्रॉपर्टी का क्लियर टाइटल, उस पर कोई लोन नहीं है, कोई लीगल क्लेम नहीं है, यह साबित करने के लिए कई अन्य दस्तावेजों की जरूरत होती है। यही दस्तावेज भविष्य में किसी कानूनी या वित्तीय लेन-देन में काम आते हैं।
प्रॉपर्टी ओनर बनने के लिए जरूरी 7 प्रमुख दस्तावेज
1. सेल डीड (Sale Deed)
यह प्रॉपर्टी का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो रजिस्ट्रेशन ऑफिस में पंजीकृत होता है। इसमें प्रॉपर्टी की जानकारी, खरीदार और विक्रेता का नाम, कीमत और ट्रांसफर की तारीख होती है। यह ट्रांजैक्शन का आधार बनता है।
2. टाइटल डीड (Title Deed)
इस दस्तावेज में प्रॉपर्टी की पूरी हिस्ट्री होती है – यानी पहले किसके नाम थी, कब-कब ट्रांसफर हुई और मौजूदा मालिक कौन है। अगर टाइटल क्लियर नहीं है, तो लोन या बिक्री में दिक्कत आ सकती है।
3. एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट (Encumbrance Certificate)
यह सर्टिफिकेट यह साबित करता है कि प्रॉपर्टी पर कोई लोन, बकाया, कोर्ट केस या अन्य कानूनी दावा नहीं है। यह आमतौर पर पिछले 15 वर्षों का ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड देता है।
4. म्युटेशन सर्टिफिकेट (Mutation Certificate)
यह दस्तावेज यह बताता है कि सरकारी रिकॉर्ड में संपत्ति किसके नाम दर्ज है। यह ग्राम पंचायत, नगर निगम या नगरपालिका से प्राप्त होता है और विरासत, गिफ्ट, या बिक्री में अनिवार्य होता है।
5. प्रॉपर्टी टैक्स रसीद (Property Tax Receipt)
यह दिखाती है कि आपने या पिछले मालिक ने संपत्ति पर सभी करों का भुगतान किया है। बिना टैक्स चुकाए, लोन या बिक्री में समस्या आ सकती है।
6. कंप्लीशन सर्टिफिकेट और ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (Completion & Occupancy Certificate)
Completion Certificate दिखाता है कि निर्माण तय मानकों के अनुसार पूरा हुआ है। Occupancy Certificate बताता है कि भवन रहने योग्य है और सभी नियमों का पालन किया गया है।
7. पजेशन लेटर और NOC (No Objection Certificate)
पजेशन लेटर बिल्डर या विक्रेता द्वारा खरीदार को प्रॉपर्टी सौंपे जाने का प्रमाण होता है। वहीं NOC सोसाइटी, बैंक, बिजली विभाग या नगर निगम जैसे संस्थानों से प्राप्त किया जाता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि प्रॉपर्टी पर कोई आपत्ति नहीं है।
अन्य आवश्यक दस्तावेज
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बिल्डिंग प्लान अप्रूवल – यह दिखाता है कि निर्माण का नक्शा स्थानीय निकाय से स्वीकृत है।
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खाता सर्टिफिकेट – संपत्ति स्थानीय निकाय में दर्ज है या नहीं।
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भूमि उपयोग प्रमाणपत्र (Land Use Certificate) – यदि कृषि भूमि को आवासीय/व्यावसायिक उपयोग में बदला गया है।
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बैंक रिलीज लेटर – अगर प्रॉपर्टी पर पहले लोन था, तो बैंक का नो ड्यूज सर्टिफिकेट।
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पावर ऑफ अटॉर्नी – अगर खरीदारी या ट्रांजैक्शन किसी प्रतिनिधि द्वारा हुआ हो।
प्रॉपर्टी खरीदते समय जरूरी सावधानियां
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सभी दस्तावेजों की मूल या सत्यापित प्रतियां प्राप्त करें।
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वकील या रियल एस्टेट एक्सपर्ट से दस्तावेजों की जांच कराएं।
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प्रॉपर्टी की टाइटल चेन, कोर्ट केस, लोन आदि की जानकारी जुटाएं।
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सरकारी पोर्टल या संबंधित विभाग में रिकॉर्ड सत्यापित करें।
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बिल्डर या सोसाइटी से जरूरी NOC अवश्य लें।
निष्कर्ष
संपत्ति खरीदना सिर्फ एक वित्तीय लेन-देन नहीं है, बल्कि एक कानूनी प्रक्रिया है। सिर्फ रजिस्ट्री कराना पर्याप्त नहीं है। प्रॉपर्टी ओनरशिप को साबित करने के लिए आपको कई जरूरी दस्तावेज रखने होते हैं, जैसे कि टाइटल डीड, म्युटेशन सर्टिफिकेट, टैक्स रसीदें, एनओसी, एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट आदि।
इन दस्तावेजों की अनुपस्थिति में भविष्य में बड़ी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं, जैसे लोन न मिलना, संपत्ति विवाद या ट्रांसफर में रुकावट। इसलिए हमेशा सभी दस्तावेज पूरे और प्रमाणित रखें, और किसी भी प्रॉपर्टी लेन-देन से पहले विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है और दस्तावेजों की सूची प्रॉपर्टी के प्रकार और राज्य के हिसाब से अलग हो सकती है। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले वकील या रियल एस्टेट विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।