Property Right 2025: आजकल का दौर बदल चुका है। पहले जहां माता-पिता अपनी संतान को अपनी संपत्ति का स्वाभाविक वारिस मानते थे, वहीं अब परिस्थितियां कुछ और ही कहानी कहती हैं। समाज में बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने मां-बाप को उनके अधिकारों का नया सहारा दिया है। अब सिर्फ संतान होना ही संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए काफी नहीं है, बल्कि मां-बाप की सेवा और देखभाल जरूरी होगी।
आइए विस्तार से जानते हैं कि इस नए कानून और फैसले का क्या मतलब है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
बच्चों को मां-बाप की संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलेगा, अगर वे सेवा नहीं करते
बहुत से लोग यह मानते हैं कि बच्चों का मां-बाप की संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार होता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच को बदल दिया है। अब अगर कोई बेटा या बेटी अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता, उनका सम्मान नहीं करता और बुढ़ापे में उन्हें अकेला छोड़ देता है, तो उसे माता-पिता की संपत्ति पर किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं मिलेगा।
यह फैसला उन लाखों बुजुर्गों के लिए राहत लेकर आया है जो अपने ही बच्चों की बेरुखी और उपेक्षा का शिकार होते हैं।
अब माता-पिता को मिल गया कानूनी सहारा
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल एक सलाह नहीं है, बल्कि यह अब कानून का हिस्सा बन चुका है। भारत सरकार पहले ही Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act के तहत यह प्रावधान लेकर आई थी कि संतान को अपने माता-पिता की देखभाल करना अनिवार्य है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे और सख्त बना दिया है।
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अगर कोई संतान अपने मां-बाप की देखभाल नहीं करती।
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उन्हें मानसिक या शारीरिक कष्ट देती है।
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या उन्हें अकेला छोड़ देती है।
तो ऐसे में माता-पिता को यह पूरा अधिकार होगा कि वे उस बच्चे को दी गई संपत्ति वापस ले सकें।
ट्रांसफर हो चुकी संपत्ति भी वापस ली जा सकती है
अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर एक बार प्रॉपर्टी बच्चे के नाम हो गई तो अब माता-पिता कुछ नहीं कर सकते। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इस भ्रम को भी दूर कर दिया है।
अगर यह सिद्ध हो जाता है कि संतान ने माता-पिता के साथ गलत व्यवहार किया है, तो भले ही संपत्ति कानूनी रूप से उसके नाम हो, उसे रद्द किया जा सकता है।
यानी अब माता-पिता अपने ही घर से निकाले जाने के डर से मुक्त हो सकते हैं।
बुजुर्गों को मिली मानसिक शांति
इस फैसले से उन हजारों लाखों बुजुर्गों को राहत मिलेगी जो अपने बच्चों के नाम पर संपत्ति कर तो देते हैं लेकिन बाद में उपेक्षित रह जाते हैं।
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अब उन्हें डरने की जरूरत नहीं है।
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वे बच्चों के व्यवहार पर नजर रख सकते हैं।
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और यदि जरूरत पड़ी तो कानूनी मदद ले सकते हैं।
यह कानून माता-पिता को आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाता है।
बच्चों को भी समझना होगा कर्तव्य का महत्व
यह फैसला सिर्फ बुजुर्गों के लिए ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए भी एक बड़ा संदेश है। अब सिर्फ यह सोचकर कि माता-पिता की संपत्ति तो भविष्य में उनकी ही होगी — बच्चों को जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
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बच्चों को यह समझना होगा कि संपत्ति का अधिकार तभी मिलेगा जब वे अपने कर्तव्यों को निभाएंगे।
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केवल खून का रिश्ता अब संपत्ति पर हक नहीं देगा।
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सेवा, देखभाल और सम्मान ही असली योग्यता बनेगी।
माता-पिता को क्या करना चाहिए?
अगर आप भी माता-पिता हैं और अपनी संपत्ति को लेकर चिंतित हैं तो कुछ अहम सावधानियां रख सकते हैं:
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बिना सोचे-समझे प्रॉपर्टी ट्रांसफर न करें।
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पावर ऑफ अटॉर्नी या गिफ्ट डीड बनाते समय शर्तें जरूर रखें।
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बच्चों के व्यवहार पर लगातार नजर रखें।
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कानूनी सलाहकार की मदद लें।
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अगर बच्चे अनदेखी करें तो चुप न रहें, समय रहते कानूनी कार्रवाई करें।
समाज में आएगी नई सोच
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से समाज में सकारात्मक बदलाव आने की उम्मीद है।
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बच्चों को अब सिर्फ अधिकार ही नहीं, बल्कि अपने माता-पिता के प्रति जिम्मेदारियों को भी समझना होगा।
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यह फैसला बुजुर्गों के लिए सुरक्षा कवच बनकर सामने आया है।
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अब माता-पिता सम्मान के साथ अपनी वृद्धावस्था जी सकेंगे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला समाज में एक नई सोच को जन्म देगा। माता-पिता अब सिर्फ मजबूरी में संपत्ति ट्रांसफर नहीं करेंगे। बच्चे भी यह जान जाएंगे कि संपत्ति पर अधिकार तभी मिलेगा जब वे अपने माता-पिता का सम्मान करेंगे, उनकी सेवा करेंगे और उनका साथ निभाएंगे।
यह कानून केवल एक नियम नहीं बल्कि एक नैतिक संदेश भी है — “संपत्ति का हक सेवा और सम्मान से मिलता है, जन्मसिद्ध अधिकार से नहीं।”